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मैं डाकिया बोल रहा हूँ... पर हिंदी निबंध | मैं पोस्टमन बोल रहा हूँ... पर हिंदी निबंध | Essay On Main Dakiya Bol Raha Hoo In Hindi | Main Postman Bol Raha Hoo In Hindi | Hindi essay| nibandh

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इस ब्लॉग के बारे में:-

इस ब्लॉग में, मैंने मैं डाकिया बोल रहा हूँ... इस विषय पर हिंदी में  निबंध प्रस्तुत किया  हैं |  यह निबंध मैंने खुद लिखा हैं | अगर आपको यह निबंध पसंद आता हैं तो कृपया हमें फॉलो करे, हमारा  ब्लॉग आपके परिवार तथा मित्रों के साथ शेयर करे |


मैं डाकिया बोल रहा हूँ... पर निबंध:-


नमश्कार दोस्तों ! कैसे हो आप सब ? बढ़िया ? क्या? ....... क्या पूछ रहे हो? ...... मैं कौन हूँ? बराबर हैं ! आप मुझे कैसे जानते होंगे ? आपको इस आधुनिक युग मैं फेसबुक और व्हाट्सप्प से फुरसत कहा जो आप मझे जानते होंगे ? मैं एक डाकिया हूं। अपने माता-पिता, या अपने दादा-दादी से पूछें, मैं कौन हूं? उस समय, जब लोग मेरी साइकिल की घंटी सुनते थे तो दौड़ पड़ते थे। किसी की पत्नी को अपने दूर नौकरी के लिए गए हुए पति का खत आता हैं , तो किसी माँ फ़ौज में दाखिल हुए बेटे से पत्र आता हैं ! जो प्रेम, माया, करुणा, स्नेह उन पत्रों में हुआ करता था ना, वह आपके फेसबुक, व्हाट्सएप में नहीं। उन दिनों, लोग महीनो-महीनो तक खत का इंतज़ार करते थे, इसलिए उनका रिश्ता इतना मजबूत और करीबी था। और आपके रिश्ते तो हर मिनिट जुड़ते और टूटते रहते हैं।

जानता हूँ, की आधुनिक तंत्रज्ञान इस युग की जरुरत हैं लेकिन फिर हम अपनी पुरानी परंपराओं और संस्कृति को कैसे भूल सकते हैं ? सभी को आधुनिक तंत्रज्ञान का उपयोग करना चाहिए लेकिन हमारी परंपरा को कभी नहीं भूलना चाहिए!

में कौन हूँ यह तो छोड़ो, लेकिन वर्त्तमान पीढ़ी को तो मैं क्या करता हूँ यह भी नहीं पता ! आजकल, मुझे डर लगता है। इस आधुनिक दुनिया में, क्या होगा अगर मेरा प्यार, स्नेह, प्यार, मेरे पत्र अप्रचलित हो जाएं? क्या मैं गुम हो रहा हूं? क्या मैं अनजान हो रहा हूँ?


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हैप्पी लर्निंग! हैप्पी राइटिंग!